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विनीता राहुरिकर

लिखना मेरे लिए ईश्वर की दी हुई सबसे बड़ी नियामत है। सबसे बड़ा आशीर्वाद है ईश्वर का। स्याही मेरी गंगा है और कलम मेरी पतवार। इसी गंगा में डूबते-उतराते मैं अपना सफर काटना चाहती हूँ और मेरी कलम ही मुझे उस पार ले जाएगी। इस अंतर में जो भी है वह इसी गंगा में से ही उपजा है और कलम की पतवार से ही पार किनारे जा लगा है। 
ये स्याही मेरी जीवन अंतरधारा है, मैं अपनी कलम से भावों के मोती भाषा की माला में गूँथकर रखूँगी। 
लिखना मेरे लिए साँस लेने जितना ही जरूरी है। मैं अपनी कलम से दो किनारे रचती हूँ। एक किनारे वो पात्र हैं जो जीते-जागते हैं जिनसे मीले अनुभवों को मैं शब्दों का रूप देकर कहानी में उतार देती हूँ और दूसरे किनारे वो पात्र हैं जो मुझे कभी मिले नहीं लेकिन जिनके साथ जीने की इच्छा आज भी दिल में कहीं गहराई तक छाई हुई है। मैं अपने शब्दों से उन्हें रचकर दो पल उनके साथ जी लेती हूँ।

मैं लिखती हूँ अपने पाठकों के लिए। जब मेरे पाठक मेरी कहानियों को पढ़कर उनमें अपने जीवन का अक्स देख पाते हैं। जब अपने जीवन की किसी समस्या का समाधान या हल ढूंढ पाते हैं वहीं मेरा लिखना सार्थक हो जाता है। जब कहानियां किसी पाठक के दिल को दो पल का सुकून, थोड़ी सी खुशी दे पाती हैं तो वो मेरे लिए सबसे बड़ा पुरस्कार होता है। मैं लिखती रहूँगी आपके लिए......

विनीता राहुरिकर.....

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