एक-ज़िंदगी-दो-चाहते

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पांच बरस पहले—
मेजर परम अपनी पारी की ड्यूटी समाप्त करके कमरे में आया. गीली यूनिफार्म बदलकर, लोअर और टी-शर्ट पहनकर अपनी स्लीपिंग बैग में घुस गया. रात के ग्यारह बज गए थे. खाना खाने के लिए मेस तक जाने का भी मन नहीं किया. मेस तक जाना मतलब फिर गिला होना. वैसे भी उसके हाथ-पैर दर्द कर रहे थे. सर में भी हलका सा दर्द था. इस समय नींद और आराम ज्यादा जरुरी था. दिन भर के कठिन परिश्रम से अकड़े बदन में दर्द की चमक सी निकली. थोड़ी देर में मांसपेशियों और नसों को इस नयी स्थिति की आदत हो जाएगी तो वे अपने आप आराम महसूस करने लग जाएँगी. रोज़ का अनुभव था परम का इसलिए वो इस दर्द में भी निश्छल पड़ा रहा. पांच मिनट में ही उसे नींद लग गयी. अभी उसे सोये हुए पंद्रह-बीस मिनट ही हुए होंगे कि फ़ोन की घंटी बज उठी. परम ने हाथ में बंधी घडी देखि, साढ़े ग्यारह बज रहे थे. उसने लपककर फ़ोन उठाया. 
“सर “
“----------“
६ 

“सर” 
“ ------------“ 
“ यस सर “ 
“ ओके सर , राईट सर “ 
“ हे बड्डीज जस्ट गेट रेडी विदीन फाइव मिनट्स . कांफ्रेंस हॉल में अर्जेंट मीटिंग है.” परम ने बेरक में सोये अपने साथियों को आवाज लगायी और तेजी से अपनी यूनिफार्म पहनी, जूते पहने और तैयार हो गया. उसकी आवाज पर सब उठ गए. 
“ क्या हुआ मेजर, इतनी रात गए? कौनसा बम फूट गया अभी?” एक ने आंखे मलते हुए पूछा. 
“ड्यूटी पर रात दिन नहीं देखा जाता सिर्फ अपना कर्तव्य निभाया जाता है.” परम ने जवाब दिया. 
“ राईट सर.” सारे जवान बड़ी मुस्तैदी से तैयार हो गए. पौने बारह बजे अपने आठ लोगो के साथ वह कांफ्रेंस हॉल में उपस्थित था. अफसर आये और मुद्दे की बात शुरू हो गयी. सीमावर्ती एक पहाड़ी कसबे में जो एक तीर्थस्थल भी था, बदल फटने की वजह से बाढ़ आ गयी थी. ऊपर से भूस्खलन होने से हालत और भी बदतर हो गए थे. सेना की वहां गयी टुकड़ी भी फंसे हुए सभी को निकाल नहीं पाई थी. इसलिए अब वहां स्पेशल टास्क रेस्क्यू फ़ोर्स ( STF) को भेजा जाना जरुरी हो गया है. प्रोजेक्टर पर अपद्ग्रस्त इलाके के फोटोग्राफ्स दिखाए गए. इलाके की जानकारी दी गयी. बाकि काम फ़ोर्स खुद ही करने में सक्षम थी. परम ने अपनी टीम की तरफ से अफसर को आश्वासन दिया और बैरक लौट आया. 
बचाव कार्य के लिए जो भी चीजें जरूरी थी, उसने फटाफट इकठ्ठा की, बैग में अपनी चार-पांच यूनिफार्म रखी और तैयार हो गया. बाकि लोग भी तैयार थे. 
“ हे बड्डीज सबसे इम्पोर्टेंट चीज़ तो तुम भूल ही गए थे. “ राणा न जाने कब कैंटीन जाकर व्हिस्की की दो बोतलें ले आया था. 
“ साला बेवडा कहीं का “ रजनीश ने हँसते हुए उसे गाली दी. 
“ बिना दारू के तो इसका काम ही नहीं चलता.” 
“ अबे तू चुप कर. देखियो वहां के हालत देखते हुए सबसे पहले तुझे ही इसकी जरुरत पड़ेगी. सबसे पहले मांगने तू ही आएगा.” राणा ने बोतले बैग में रखते हुए कहा. 
७ 

रजनीश ने राणा के लिए एक व्यक्तिगत भद्दी बात बोली पर राणा ने बुरा नहीं माना उलटे सबके साथ वो भी जोर से हंस दिया. ये हंसी मजाक ही उन्हें विपरीत परिस्थितियों में अपना संतुलन बनाये रखने में मदद करते थे और विकट परिस्थितियों से जूझने की ताकत देते. मेजर परम की टीम तैयार थी. सब लोग दो गाड़ियों में सवार होकर रात में ही स्टिंग ऑपरेशन पर निकल गए. 

               सैकड़ों मील दूर अहमदाबाद शहर में रात के डेढ़ बजे एक लड़का और एक लड़की अपनी पीठ पर समान से भरे बैग लादकर सड़क पर तेजी से चुपचाप चल रहे थे. ये नेहरु नगर था अहमदाबाद का एक पॉश ईलाका. यहाँ बड़े-बड़े बंगले बने हुए थे. थोड़ी देर पहले लड़का एक बंगले के बाहर पहुंचा था, उसने मोबाइल पर किसी को मेसेज किया और दो मिनट बाद ही बंगले के पीछे बने एक दरवाजे से एक लड़की बाहर निकली. सामने वाले मुख्य दरवाजे पर दो दरबान खड़े पहरा दे रहे थे. उन्हें पता भी नहीं चला की कब बंगले के पीछे के दरवाजे से बंगले के मालिक की बेटी फरार हो गयी. जिसने शायद शाम को ही उस दरवाजे का ताला खोलकर रख दिया था. वे बेचारे बड़ी मुस्तैदी से पहरा दे रहे थे, उन्हें क्या पता था सुबह सवेरे ही उनकी शामत आने वाली है. जैसे ही वे दोनों बंगले से दूर आ गए लड़की ने एक गहरी साँस ली. 
“ उफ्फ! “ लड़की एक निश्चिंत साँस लेकर बोली “ निकल आये आखीर.” 
“ तुम तो मरोगी ही साथ में मुझे भी मरवाओगी . कल अपने ही अख़बार की हेडलाइंस में और अपने ही न्यूज़ चैनल पर हम दोनों की न्यूज़ चलेगी कि हम दोनों भाग गए. कल सुबह शहर भर के होकर्स गलियों में चिल्लाते घूमेंगे –----‘भरत देसाई, प्रसिद्द अख़बारों भरत टाइम्स और भरत एक्सप्रेस तथा टी.एन.टी.वी. न्यूज़ चैनल के मालिक भरत देसाई की बेटी चीफ रिपोर्टर अनूप के साथ फरार ----- अभी भी वक्त है तनु सोच लो “ अनूप ने मिन्नत करके कहा 
“ अरे डरपोक कहीं के. जिंदगी में जोखिम लिए बिना कुछ नहीं मिलता. कुछ पाना है तो रिस्क तो लेनी ही पड़ती है थोड़ी बहुत. अब ये रोना धोना बंद करो. हम प्रदेश भर में सबसे प्रख्यात अख़बार चलाते है और हम ही दूसरी एजेंसियों से क्लिपिंग और न्यूज़ खरीदें? नहीं.” तनु ने तेज कदमो से चलते हुए कहा. 
“ हमारे रिपोर्टर भी तो न्यूज़ लेने गए थे यार.” अनूप ने कहा. 
“ पर वो अच्छा कवरेज लेकर नहीं आये न. अब मैं बहुत अछि स्टोरी बनाउंगी देख लेना. “ तनु बोली. 
“ क्या देख लेना? तुम्हे तो कुछ नहीं पर मेरी तो नौकरी जाएगी यार.” अनूप ने फिर मिन्नत की. 
“ अरे जब तक भरत देसाई की छोकरी तुम्हारे साथ है तब तक नौकरी की चिंता क्यों कर रहे हो” तनु ने गली के मोड़ पर अँधेरा होने के कारण अनूप का हाथ पकड़ लिया. 


“ भरत देसाई की छोकरी के कारण ही नौकरी पर तलवार लटक रही है. अनूप आजिजी से बोला. 
“सो मीन ऑफ़ यू. तुम मेरे लिए एक मामूली नौकरी नहीं छोड़ सकते? “ तनु ने उसे ताना मारा. 
“ अरे तुम्हारे लिए तो मैं कुछ भी कर जाऊंगा लेकिन भरत देसाई की नौकरी मामूली नहीं है न.” अनूप झल्लाया . 
“ क्या है तुम्हारे लिए नौकरी मुझसे ज्यादा हो गयी? अच्छा तुमने आशीष को बोल दिया था न कि वह समय पर पहुँच जाए . नहीं तो हमारे जाने का कोई फायदा ही नहीं. अगर केमेरामन ही नहीं होगा तो सारा कवरेज कौन लेगा.” तनु ने ऑटो स्टैंड पर खड़े एक ऑटो की और बढ़ते हुए कहा. 
“ हाँ बोल दिया है. वो बस स्टैंड पर पहुँच जायेगा सीधे. बात नौकरी की नहीं है तनु, उस जगह जाना खतरे से खाली नहीं है. एक तो पहाड़ी ईलाका है, दुसरे वहां इस हादसे के बाद जबरदस्त प्रदुषण फैला होगा. मैं और आशीष चले जाते है, तुम प्लीज घर वापस जाओ. वहां मत चलो. अनूप ने चिंतित स्वर में कहा. 
“ जब तुम जा सकते हो तो मैं क्यों नहीं जा सकती? नहीं अनूप मैं तुम दोनों के साथ जरुर चलूंगी. मैंने ही प्लान बनाया और अब तुम दोनों को खतरे में डालकर मैं घर में आराम से बैठूं, ऐसा नहीं हो सकता.” तनु ने ऑटो में बैठते हुए कहा. “ और प्रदुषण का क्या है वहां दिल्ली में जाकर इंजेक्शन ले लेंगे.” 
अनूप निरुत्तर हो गया . उनका ऑटो बस स्टैंड की और चल पड़ा. आशीष ने अजमेर की टिकिटें ले रखीं थीं. बस से तीनो अजमेर पहुंचे , अजमेर से दिल्ली और दिल्ली से उस तीर्थस्थान पर पहुंचे जहाँ बाढ़ ने चारों और विनाश रच दिया था.

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