-रोशनी-का-पेड़

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|| मन के करीब की कवितायें ||

"आयु की गोधूली  में 
तन की चौखट पर 
प्रतीक्षा रत हूँ मैं भी 
तुम्हारे आगमन की "

हम सब को किसी न किसी की तलाश रहती है ।कविता ऐसी ही तलाश का नाम है ।खो कर पाना होता है ..डूब कर खोजना होता है ।खुद के ही छिलके निकाल कर अपने अंदर के भाव की पीड़ा को सहलाना होता है ।

ऐसी ही हैं विनीता की कवितायें ।गहरे भावों को पकड़ने में सक्षम है । शब्द इंतज़ार करते है उसके भावों को व्यक्त करने के लिए । खुद को सार्थक समझते है ।धरती से आसमान तक एक सुनहरी राह पर चलती हुई कविता अपने होने के  विश्वास से भरती जाती  है ।

 मन के एक एक मनके से काव्य की  पूरी माला बनती जाती है ।एक मनका आत्म विश्वास की बात करता तो दूसरा अपने स्वाभिमान  की चमक से चमकता  है ।ऐसे ही प्रेम , प्रतिक्षा ,ललकार , खुशी -दुख ,मिलन विरह ,इंतज़ार आदि मनके अपनी पूरी चमक और ऊर्जा से इस काव्य माला गुथें हैं ।

प्रेम के संग विरह और इंतज़ार जुड़ा हुआ है ।दोबारा मिलन की आस ही ऊर्जा है ।
इस बात को कवयित्री ने सरल ,सहज और मासूम कहन में कह दिया ......

        'इस बार आओ तो 
         हम दोनों उतरेगें तलहटी में 
        और जियेगें वो सारे पल 
         दुबारा ,साथ मे .….....

अक्षर ही काव्य की आत्मा है । शब्द ब्रह्म है । जो दिखे न दिखे ,कहा जाए या ना कहा जाए ,शब्द सदा उपस्थित रहते है ,
माध्यम है भावनाओं को उकेरने का ।
इनका सम्मान करते हुए विनीता कहती हैं- 

'अक्षर हमेशा सच्चे होते हैं '

'शब्द ही मेरी ताक़त है ।'

स्त्री के अपने सुख- दुख होते है ।मन के आसमान पर ये दौनो चमकते है । अपने सुख के सीवन के धागों को उधेड़ कर अपनो के दुख को बड़ी कुशलता से रफू देती है ।प्रेम में समर्पिता ,परिवार की धुरी बन जाती है स्त्री ।स्त्री होने की इसी उधेड़बुन को बहुत तरीके से काव्य में उतारा विनीता ने । सागर सा मन लिए ,अपनी बेचैनी को छुपा कर लहर लहर में अपना होना सिद्ध करती है अपनी 'वह ' नाम की छोटी छोटी कविताओं में ।

स्त्री होना याने कमज़ोर होना नही ।अपनी शक्ति को पहचानने का रास्ता भी दिखाती है विनीता ।अपने स्वाभिमान को बनाये रखने का आह्वान करती कवितायें स्त्री को अपनी शक्ति को जागृत करने की राह भी दिखाती   हैं ।


 अपने आत्मविश्वास को जगाती हुई कहती हैं - 

 ' मत डरना इन घने अंधेरों से 
अपने खोल से ज़रा बाहर निकलो तुम 
थोड़ा जोर लगाकर 
झाड़ डालो खुद पर पड़ी मिट्टी 
और गर्दन तान कर देखो 
ऊपर सूरज चमकता है ।'

सहज सुंदर भाषा काव्य को पाठक के करीब ले आती है ।भाव से उनका तालमेल पाठक को कविताओं के साथ चलने मज़बूर कर देता है । शब्द विन्यास ,प्रतीक विम्ब सभी कविताओं और कवयित्री के परिपक्व मन की साक्षी हैं ।
कितना भी कह ले कवि  ,अपनी अभिव्यक्ति सदा अपूर्ण लगती है ।कविता जितना कहती है उतनी छुपा भी ले जाती है ।शब्दों के बीच की खाली जगह में ही मूल कविता छुपी होती है । सदा ही अपूर्ण लगता है कहन । ये हर कवि के मन की बात है ।अपनी शब्दों की सीमा में बंध कर ही काव्य की यात्रा पूर्ण होती है ।अभी भी विनीता के पास बहुत सा अनकहा जमा है। खर्च होगा धीरे धीरे ।
शिव मंगल सिंह सुमन की पंक्तियां याद आ रही है -
' कवि की अपनी सीमाएं हैं 
कहता कितना ,कितना कह पाता है
कितना भी कह डाले लेकिन 
अनकहा अधिक रह जाता है ।'

विनीता का गद्य और पद्य दौनो पर समान अधिकार है । उनकी कलम निरंतर ऊंचाइयों को छू रही है ।ऊंचाइयों को छूना आसान तो नही है ।मन जितना गहरे में डूबता है काव्य उतना ही सँवरता ,निखरता और ऊंचाइयों को छूने के क़ाबिल होता है। 

इस प्रथम काव्य संग्रह के लिए प्यारी सी छोटी बहन और सखी को बहुत स्नेह ,प्यार आशीर्वाद और खूब खूब शुभकामनाये।

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