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    पराई जमीन पर उगे पेड

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    रोशनी का पेड़

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    एक ज़िंदगी दो चाहते

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    कारगिल युद्ध का वीर सिपाही

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    ऊँचे दरख्तो की छाँव

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विनीता राहुरिकर

लिखना मेरे लिए ईश्वर की दी हुई सबसे बड़ी नियामत है। सबसे बड़ा आशीर्वाद है ईश्वर का। स्याही मेरी गंगा है और कलम मेरी पतवार। इसी गंगा में डूबते-उतराते मैं अपना सफर काटना चाहती हूँ और मेरी कलम ही मुझे उस पार ले जाएगी। इस अंतर में जो भी है वह इसी गंगा में से ही उपजा है और कलम की पतवार से ही पार किनारे जा लगा है। 
ये स्याही मेरी जीवन अंतरधारा है, मैं अपनी कलम से भावों के मोती भाषा की माला में गूँथकर रखूँगी। 

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विनीता जी का उपन्यास जितना पढ़ा अब तक उसने और आगे पढ़े जाने की बैचेनी बढ़ा दी। रोचकता और सहज भाषा इसे पढ़वाते गयी। कुछ प्रसंग बड़े अच्छे से आये हैं और वे भीतर तक उथल-पुथल भी मचाते हैं। इस विषय और सन्दर्भ में हिंदी की बहुत ही कम रचनाएँ मिलेंगी। विश्व साहित्य में ऐसी विषयवस्तु की कई बड़ी रचनाएँ हैं लेकिन हमारे यहाँ उंगलियों पर गिनी जाने लायक। उपन्यास के लिए विनीता जी को हार्दिक बधाई।

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मनीष वैद्य

विनीता के उपन्यास के अंश पढ़कर मन भावुक हो गया। मुझे भी बचपन से फिल्मों में देखकर अपने देश के जवानों की बहादुरी पर बड़ा गर्व था...उस गर्व का ही नतीजा है आज मेरा बेटा एयरफोर्स में अपनी कमान कुशलता से थामे है। कारगिल युद्ध में अपनी उपस्थिति दर्ज करवा चुका है। 
विनीता ने जवानों की जिंदगी पर लिखकर देश के प्रति अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हमें गर्व है विनीता पर। यशस्वी भव।

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मधु सक्सेना

विनीता जी का उपन्यास एक समसामयिक और महत्वपूर्ण उपन्यास है जो सेना के जवानों की कठिन जीवनचर्या से हमें रूबरू कराता है। उपन्यास में जो नक्सली और ग्रेनेड वाला प्रसंग है वह सेना के खतरे से भरे जीवन की ओर इंगित करता है। विनीता जी सेना के जीवन से अभिभूत होने के कारण उन पर उपन्यास लिखने की ठानती हैं यह अपने आपमें एक बहुत बड़ी बात है। इस साहसपूर्ण प्रयास के लिए मैं उन्हें विशेष बधाई देना चाहता हूँ।
आज जब नेता और अधिकारी अपराधियों और भ्रष्टाचारियों से सांठगांठ करके देश को लूटने पर लगे हैं, विनीता जी का यह उपन्यास आने वाली पीढ़ी का मार्गदर्शन करेगा।
कथ्य और कहन दोनों दृष्टि से उपन्यास उचित दिशा में अग्रसर दिखता है। विनीता जी को बहुत-बहुत बधाई।

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शेखर सावंत

विनीता जी के उपन्यास के कुछ अंश दहला देने वाले हैं। उपन्यास की प्रारंभिक प्रतिज्ञा यही है कि वह अपने को पढ़वा ले जाये। इस उपन्यास में संस्मरणात्मक शैली का उपयोग करते हुए लेखिका ने इसे रोचक बनाया है। जहां भुट्टे और श्मशान वाला प्रसंग हमारे भीतर एक झुरझुरी पैदा करता है वहीं ग्रेनेड वाला प्रसंग तकनीकी जानकारी के कारण इसे प्रामाणिक और विश्वसनीय बनाता है। ये उपादान इसे मात्र कपोल-कल्पना की बजाय यथार्थ की तरह रखते हैं। दरअसल सबसे महत्वपूर्ण होती है लेखक की मूल संवेदना जिसके तहत कोई कृति रची जाती है। इसका प्रमाण लेखिका ने अपनी भूमिका में दे ही दिया है। विनीता राहुरिकर को बधाई।

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निरंजन क्षोत्रिय

हिन्दी साहित्य में फैंटेसी कथा लेखन बहुत ही कम हुआ है। आपके द्वारा लिखा जा रही यह रचना महत्वपूर्ण है । कुछ भी नया लिखना महत्वपूर्ण  होता है । कथा रोचक है। आगे पढने के लिए उत्सुकता जागती है । फैंटेसी को आपने विज्ञान के आवरण में लपेट कर प्रस्तुत किया है। पाठक अपने  उसी लोक में खड़ा पाता है। आपका यह उपन्यास सार्थक और सफल रहेगा ।
सादर 

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शाश्वत रतन

विनीता जी , आप द्वारा सस्नेह भेंट किया गया उपन्यास ' एक जिंदगी, दो चाहतें मैनें पढ़ कर आज ही समाप्त किया है और आपको बधाई देने के लिए मैं स्वयं को रोक नहीं पा रही हूँ। सैनिकों के कठिन जीवन को दर्शाने के लिए आपने कितना सुंदर ताना -बाना बुना है। आपके देश प्रेम को नमन। कहानी में कहीं ढील नहीं , उत्सुकता बनी रहती है। सटीक प्रसंग और सरल भाषा में एक बेहद रोचक कृति की रचना के लिए पुन:बधाई।आपसे ऐसी और भी कृतियों की आशा है।
     अशेष शुभकामनाओं सहित

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सुदर्शन रत्नाकर,फ़रीदाबाद

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